भारत के लिए कहीं परवेज मुशर्रफ के जैसे न हो जाए डॉनल्‍ड ट्रंप का आगरा दौरा!


आगरा
साल 2001 की बात है। करगिल की जंग के बाद भारत और पाकिस्‍तान के बीच र‍िश्‍तों पर जमी कठोर बर्फ को पिघलाने के लिए आगरा में शिखर सम्‍मेलन आयोजित किया गया। उम्‍मीद थी कि दुनियाभर में प्‍यार और मोहब्‍बत की निशानी ताजमहल की छांव में भारत और पाकिस्‍तान के बीच दोस्‍ती की नई इबारत लिखी जाएगी, लेकिन हुआ इसका ठीक उल्‍टा। अब इस शिखर बैठक के 19 साल बाद अमेरिकी राष्‍ट्रपति डॉनल्‍ड ट्रंप आगरा की यात्रा पर आ रहे हैं और भारत ने इस दौरे से बड़ी उम्‍मीदें लगा रखी हैं लेकिन आशंका के बादल भी आकाश में मंडरा रहे हैं।


15 जुलाई, 2001 को दो परमाणु हथियार संपन्‍न राष्‍ट्रों भारत और पाकिस्तान के बीच ताजमहल से मात्र कुछ ही कदम की दूरी पर स्थित होटल जेपी पैलेस में शिखर वार्ता हुई। भारत की ओर से इस वार्ता का नेतृत्‍व तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्‍तान की ओर से तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति और सैन्य तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ ने। यह वही मुशर्रफ थे, जिन्‍होंने करगिल में घुसपैठ की नापाक साजिश रची थी।

भारत ने मुशर्रफ का किया भव्‍य स्‍वागत
विदेशी मामलों के विशेषज्ञ कमर आगा एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में कहते हैं कि पाकिस्‍तान के इतिहास को देखते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने शुरू से ही बातचीत को लेकर सतर्कता बरती। हालांकि प्रधानमंत्री अटल‍ बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्‍तान के साथ विवाद को सुलझाने के लिए नरम रुख अपना रखा था। उधर, मुशर्रफ ने भी कहा कि वह 'खुले मन' और 'लचीला रवैया' लेकर वार्ता की मेज पर बैठने जा रहे हैं। तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति केआर नारायणन ने भी कहा कि भारत 'साहसिक कदम' उठाने को तैयार है।

भारत ने कश्‍मीर लोगों के जीवन की बेहतरी के लिए जम्‍मू-कश्‍मीर के अलगाववादी गुट हुर्रियत कॉन्‍फ्रेंस को भी वार्ता में शामिल होने का न्‍योता दिया। शिखर वार्ता के दौरान वाजपेयी और मुशर्रफ ने कई बार अकेले में बातचीत की। करीब 90 मिनट तक दोनों नेताओं के बीच कश्‍मीर, सीमापार आतंकवाद, परमाणु हमले के खतरे को कम करने, युद्धबंदियों को र‍िहा करने के मुद्दे पर बातचीत हुई। इस बातचीत के बाद दोनों देशों में इतनी आशा बंध गई कि वाजपेयी और मुशर्रफ एक समझौते या संयुक्‍त घोषणापत्र पर सहमत हो जाएंगे। इस बीच भारत के विरोध के बाद भी परवेज मुशर्रफ ने हुर्रियत के नेताओं के साथ बैठक की।

टूट गई बातचीत, मुशर्रफ ने वाजपेयी पर साधा न‍िशाना
वाजपेयी और मुशर्रफ के बीच कई दौर की बातचीत के बाद अचानक भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारी विवेक काटजू ने प्रधानमंत्री वाजपेयी से अकेले में बातचीत की और वार्ता टूट गई। दरअसल, भारत पाकिस्‍तान की ओर से दिए जा रहे कोरे आश्‍वासनों पर भरोसा नहीं कर पाया। विशेषज्ञों के मुता‍बिक वाजपेयी सरकार मुशर्रफ और उनकी सरकार पर भरोसा नहीं करती थी। इसके अलावा भारत में बड़ी संख्‍या में लोग करगिल घुसपैठ के मास्‍टरमाइंड और लाहौर शिखर वार्ता को पटरी से उतारने वाले मुशर्रफ पर भरोसा नहीं कर रहे थे। यही नहीं मुशर्रफ सरकार कश्‍मीर में सीमापार से जारी आतंकवाद को खत्‍म करने पर कोई ठोस आश्‍वासन देने को तैयार नहीं थी।

भारत को लग रहा था कि मुशर्रफ कश्‍मीर को खुला बॉर्डर बनाने जैसी बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे लेकिन वहां की सेना आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करेगी। वार्ता के विफल होने के बाद कहते हैं कि वाजपेयी इतने गुस्‍से थे कि वह मुशर्रफ को होटल से बाहर छोड़ने भी नहीं गए। वर्ष 2008 में राष्ट्रपति पद से हटने के बाद मुशर्रफ ने मीडिया से बातचीत में कहा कि विवेक काटजू ने वार्ता को पटरी से उतार दिया। मुशर्रफ ने अपनी किताब 'इन द लाइन ऑफ फायर' में कहा, 'मैंने आगरा छोड़ने से पहले वाजपेयी साहब को बताया कि मेरी और आपकी बहुत बेइज्जती हुई है क्योंकि कोई हैं जो हमसे भी ऊपर है। जो भी हमने तय किया उसने (विवेक काटजू) उस पर पानी फेर दिया। बता दें कि 2002 में काटजू को अफगानिस्तान के लिए भारत ने अपना राजदूत नियुक्त किया।

वाजपेयी ने दिया मुशर्रफ को करारा जवाब
मुशर्रफ के इस दावे पर वाजपेयी ने अपना जवाब‍ दिया। उन्‍होंने कहा कि आगरा शिखर सम्मेलन की नाकामी की वजह और कोई नहीं, बल्कि मुशर्रफ ही थे। अगर मुशर्रफ कश्मीर में हो रही हिंसा के बारे में भारत के रुख से इत्तेफाक रखने को तैयार हो जाते तो आगरा समिट कामयाब हो जाता। वाजपेयी ने मुशर्रफ की इस टिप्पणी पर कहा कि वहां किसी की बेइज्जती नहीं हुई थी, मेरी तो कतई नहीं। सच तो यह है कि मुशर्रफ ने कश्मीर में खून-खराबे को 'जंगे-आजादी' बताया था, जिसकी वजह से आगरा शिखर बैठक नाकाम हुई थी।

वाजपेयी ने कहा कि मुशर्रफ दिल्ली आए, लेकिन आगरा में बातचीत के दौरान उनका रुख बदल गया। उन्होंने यह कहा कि जम्मू-कश्मीर में हो रही हिंसा को 'आतंकवाद' नहीं कहा जा सकता है। जनरल मुशर्रफ के इस रुख को भारत मंजूर नहीं कर सकता था और आगरा शिखर बैठक की नाकामी के लिए यही रुख जिम्मेदार बना।

पीआर डिजास्‍टर थी आगरा समिट: आडवाणी

वाजपेयी ने कहा कि 2004 में पाक ने आखिरकार आतंकवाद के बारे में भारत के नजरिए को स्वीकार किया। इस्लामाबाद में जारी साझा बयान में उसने वादा किया कि वह पाकिस्तान के नियंत्रण वाली किसी भूमि को भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल नहीं होने देगा। यह संयुक्त बयान ही दोनों देशों के बीच समग्र वार्ता का शुरुआती आधार बना। अगर यह पहले हो गया होता तो आगरा वार्ता नाकाम नहीं होती।

बाद में पूर्व रॉ प्रमुख एएस दुलत ने दावा किया कि मुशर्रफ जिस तीसरे व्‍यक्ति का जिक्र कर रहे थे वह लालकृष्‍ण आडवाणी थे। बाद में आडवाणी ने भी अपनी आत्‍मकथा 'माई कंट्री, माई लाइफ' में कहा कि आगरा शिखर सम्‍मेलन से एनडीए सरकार की छवि को बड़ा धक्‍का लगा था। उन्‍होंने कहा कि पाकिस्‍तानी नेता भारतीय टीवी संपादकों के साथ बैठकर भारत की कश्‍मीर और सीमापार आतंकवाद की नीति को लेकर निशाना साधा और आरोप लगाकर वार्ता को असफल करा दिया।

ट्रंप बनेंगे मुशर्रफ या ट्रेड डील पर बनेगी बात?
अमेरिकी राष्‍ट्रपति डॉनल्‍ड ट्रंप 24 फरवरी को ताजनगरी पहुंच रहे हैं। भारत को उम्‍मीद है कि अहमदाबाद में भव्‍य स्‍वागत और मोहब्‍बत के प्रतीक ताजमहल को देखने के बाद ट्रंप व्‍यापार और एच1एन1बी वीजा को लेकर भारत को कुछ र‍ियायत दे दें। हालांकि लोगों में इस बात का भी डर सता रहा है कि कहीं ट्रंप का दौरा भी मुशर्रफ की तरह से परेशानी का सबब न बन जाए।

इस दौरे को भव्य रूप देने में भारत ने कोई कसर नहीं छोड़ी है, लेकिन इस बीच 'ट्रेड डील' को लेकर कुछ साफ नहीं हो पाया है। ट्रंप ने भारत आने से पहले साफ कर दिया है कि वह अमेरिका के हित आगे रखकर ही कुछ बात करेंगे। कहा जा रहा है कि भारत एक मिनी ट्रेड डील चाहता था लेकिन अमेरिका तैयार नहीं हुआ।

भारत पर अधिक टैक्स वसूलने का कई बार आरोप लगा चुके डॉनल्ड ट्रंप ने लास वेगास में पिछले दिनों एक कार्यक्रम में कहा, 'हम भारत जा रहे हैं और हम वह शानदार डील कर सकते हैं। हो सकता है कि हम इसे अभी टाल दें और इसे चुनाव के बाद करें। हम देखेंगे कि क्या होता है। लेकिन हम तभी डील करते हैं जब वह अमेरिका के हित में हो, क्योंकि हम 'अमेरिका फर्स्ट' की नीति पर चल रहे हैं। चाहे किसी को यह पसंद हो या नहीं।'

इस तरह से उन्होंने यह भी इशारा किया कि वह डील को अभी टाल सकते हैं और जब भी इस डील को फाइनल करेंगे वह अमेरिका का हित पहले देखेंगे। ऐसे में पीएम मोदी को एक बार फिर 'टफ निगोशिएटर' बनना पड़ेगा, जैसा कि ट्रंप भारत के लिए कहते रहे हैं। डील को भारतीय हित में झुकाना पीएम मोदी के लिए चुनौती होगी।