यदि बापू जिंदा होते तो कोरोना काल में क्या करते?


नई दिल्ली
पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल और महात्मा गांधी के पोते गोपालकृष्ण गांधी ने बताया कि इन हफ्तों में मुझसे सबसे दो सवाल सबसे ज्यादा पूछे गए। पहला- क्या यह सच है कि गांधीजी को 1918 में स्पनिश फ्लू हुआ था? दूसरा, अगर वह आज जीवित होते तो क्या कर रहे होते? इन सवालों के जवाब में गोपालगृष्ण गांधी ने टेलीग्राफ में एक लेख लिखा।
उन्होंने पहले सवाल के जवाब में बताया कि यह सच है कि स्पेनिश फ्लू से पूरी दुनिया में महामारी फैल गई थी। दुनिया भर में सैकड़ों लोगों की मौत हुई, लेकिन इस घातक फ्लू से गांधीजी को कुछ नहीं हुआ। बापू उस साल गुजरात के खेड़ा जिले में व्यस्त थे। उस साल फसल खराब होने के कारण वह किसानों से टैक्स न लेने की लड़ाई लड़ रहे थे। यहां उनके साथ सहयोगी वल्लभभाई पटेल भी थे। खेड़ा में उनका सत्याग्रह पूरा हुआ तो वह अस्पताल में भर्ती हुए। उन्हें कुछ पेट की समस्या थी न कि उन्हें स्पेनिश फ्लू हुआ था।


स्पेनिश फ्लू से कई मुल्कों में मौतें
गोपालकृष्ण ने अपने लेख में बताया कि स्पेनिश फ्लू से गांधी के बड़े बेटे हरिलाल की पत्नी गुलाब और उनके बड़े बेटे शांति की मौत हो गई थी। वे उन दिनों गुजरात के पथराडा गांव में रहते थे। इस बीमारी का सबसे ज्यादा प्रकोप वहीं हुआ था। बहू और पोते की मौत के बाद कस्तूरबा अपने तीन पोते-पोतियों को लेकर आश्रम आ गईं और उनका वहीं पालन-पोषण किया।


स्पैनिश फ्लू लगभग 15 महीने तक चला। इस दौरान उसने दुनिया भर में 500 मिलियन से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में ले लिया। दुनिया की तत्कालीन कुल आबादी में लगभग तीन से पांच प्रतिशत लोगों की मृत्यु हुई थी। 
अब्दुल गफ्फार खान का परिवार भी चपेट में
अब्दुल गफ्फार खान, जिन्हें बाद में बादशाह खान और फ्रंटियर गांधी के नाम से जाना गया, उनके बेटे गनी को स्पेनिश फ्लू हो गया। गनी की मां और गफ्फार की पत्नी मेहर कांध ने ईश्वर से प्रार्थना की कि उनका बेटा सही हो जाए भले ही भगवान उनकी जान ले ले। कुछ ऐसा ही हुआ। गनी तो ठीक हो गया लेकिन उनकी मां मेहर बीमार हो गईं।


दूसरा सवाल कि गांधी जी होते तो कोविड-19 से निपटने के लिए क्या करते? इसके जवाब में गोपाल कृष्ण गोंधी ने कहा कि यह जवाब देना कठिन है। हालांकि उन्होंने कहा कि गांधी जी होते तो पह साफ-सफाई से लेकर स्वास्थ्य कर्मियों तक के लिए आगे खड़े होते। वह अपना समय लोगों की सेवा में व्यतीत करते। किसानों की लड़ाई, खेड़ा आंदोलन की तर्ज पर वह आगे बढ़ते और गरीबों के लिए आवाज उठाते।