कोरोना वॉरियरः सैनिटरी पैड के बिना कोविड ICU में ड्यूटी करती रहीं यह डॉक्टर


नई दिल्ली
कॉविड वॉरियर डॉक्टर कामना कक्कड़ की यह कहानी मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे पर हर किसी के लिए प्रेरणादायक है। डॉ. कामना ने पीपीई किट्स में पीरियड्स (महावारी) शुरू होने की परेशानी को टाल कर पहले अपने मरीजों के इलाज को तवज्जो दी और डयूटी निभाई। लगभग चार घंटे तक बिना सैनिटरी पैड के महावारी के दौर से गुजरते हुए उन्होंने अपने काम को अंजाम दिया, ताकि जिन गंभीर मरीजों के इलाज की जिम्मेदारी उन्हें मिली है, उसमें कहीं से भी कोई कमी न रह जाए।

कामना का कहना है कि एक डॉक्टर होने के नाते मुझे लगता है कि पीरियड जैसे मुद्दे पर कब तक चुप रहेंगे। मुझे इस बात का दर्द है कि देश में आज भी हजारों बेटियां सैनिटरी पैड नहीं उपलबध होने की वजह से पीरियड के दौरान स्कूल छोड़ देती हैं। आखिर कब तक ये सब होता रहेगा? मैं डॉक्टर होकर कैसे चुप रह सकती हूं। इसलिए उस दिन जो हुआ मैंने शेयर किया, ताकि पीरियड को लेकर जो झिझक है, उसे दूर करने के लिए सभी इसी तरह आगे आएं।


एनबीटी से बात करते हुए डॉ. कामना ने कहा कि 17 मई की बात है। कोविड आईसीयू में मेरी पहली ड्यूटी थी। दिमाग में पहले से ही कई तरह के सवाल उठ रहे थे, मन में डर भी था और एक्साइटमेंट भी। ड्यूटी शुरू होने के डेढ़ से दो घंटे बाद ही मुझे एहसास हो गया कि पीरियड शुरू हो गए हैं। अब मैं दुविधा में थी। क्या करें और क्या नहीं? आईसीयू में पांच गंभीर मरीज थे। मेरे साथ बाकी डॉक्टर व नर्स भी अपने काम में लगे हुए थे। मुझे लगा कि मैं अपने डिपार्टमेंट को सूचना दूं, मुझे रीलिफ किया जाए। या खुद बाहर जाऊं, दूसरे डॉक्टर की ड्यूटी लगे। इन सवालों के साथ भी कई सवाल थे। सबसे बड़ा सवाल था, समय और पीपीई किट्स की बर्बादी। दोनों महत्वपूर्ण थे।


अगर मैं बाहर जाती और पैड पहन कर आती तो उसके लिए पहले मुझे यह पीपीई किट उतारनी होता, फिर दूसरी पहननी होती। एक बार पीपीई किट पहनने में 40 से 45 मिनट का समय लगता है और उतना ही समय उतारने में लगता है। इतने समय की बर्बादी करना मेडिकली सही नहीं था। दूसरा, मैं बाहर जाती और मेरी जगह कोई और आता तो उसमें भी एक पीपीई किट और 45 मिनट का समय बर्बाद होता।


पीजीआईएमएस, रोहतक की एनेस्थीसिया डिपार्टमेंट की डॉ. कामना ने कहा कि मेरा कॉलेज बहुत ही स्पोर्टिव है, अगर कॉलेज प्रशासन को पता चलता तो वो मुझे ऐसा नहीं करने देते। इसलिए मैंने अपने स्तर पर फैसला किय कि मैं पीरियड के साथ ही काम करती रहूंगी। मुझे पता था कि पीपीई किट इस तरह से बनी होती है कि उससे ब्लड क्रॉस नहीं हो सकता, लेकिन हां इंफेक्शन का खतरा है। बावजूद मैंने किया। ड्यूटी खत्म करके मैं जब बाहर आई और घर पहुंची तो अपने दोस्त को बताया। उसने मुझे वॉरियर कहा। लेकिन उस समय तक मुझे ऐसा नहीं लगा। लेकिन जब मैंने सर्च किया तो पता चला कि देश में सिर्फ 36 पर्सेंट लड़कियां या महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं। हर साल 23 मिलियन लड़कियां पीरियड की वजह से स्कूल छोड़ देती हैं। यह समाज की ऐसी पीड़ा है जिसने मुझे झकझोर दिया और मैंने इस पर बात करने का फैसला किया और मैं दावे से कह रही हूं कि हमें इस पर कंडोम जैसे ही खुलकर बात करनी चाहिए, हर एटीएम के पास पैड की भी मशीन हो, ताकि लड़कियां अपनी मर्जी से इसका इस्तेमाल कर सकें।