अफगानिस्तान सरकार ने तालिबान के तीन आतंकियों को छोड़ा-सरकार के फैसले में पाक का अहम रोल


काबुल
2 विदेशी प्रफेसरों के बदले अफगानिस्तान सरकार ने तालिबान के तीन आतंकियों को छोड़ दिया है। राष्ट्रपति अशरफ गनी ने इस बात की घोषणा की कि उनकी सरकार ने अदला-बदली के तहत तालिबान के तीन कैदियों को दो यूनिवर्सिटी प्रफेसरों के बदले रिहा किया है। प्रफेसरों में एक अमेरिकी और एक ऑस्ट्रेलिया के हैं, जिन्हें आतंकियों ने 2016 में अगवा कर लिया था। तालिबान आतंकियों में अनस हक्कानी भी शामिल है, जिसे 2014 में पकड़ा गया था। खास बात यह है कि अनस का बड़ा भाई सिराजुद्दीन हक्कानी तालिबान का डेप्युटी लीडर और हक्कानी नेटवर्क का सरगना है। अफगान सरकार के फैसले में पाक का अहम रोल माना जा रहा है।


दरअसल, हाल में अमेरिका के दौरे पर गए पाक पीएम इमरान खान ने दोनों विदेशी प्रफेसरों की रिहाई के लिए प्रयास करने का वादा किया था। टेलिविजन पर दिए संबोधन में राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा कि तालिबान के साथ वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए तालिबानी कैदियों को रिहा किया गया है। इनकी रिहाई के बदले में तालिबान अगवा यूनिवर्सिटी प्रफेसरों को छोड़ेगा। आपको बता दें कि तालिबान अभी तक अफगानिस्तान सरकार को मान्यता नहीं देने की बात कहता रहा है। अमेरिकी प्रतिनिधियों के अलावा आतंकी संगठन ने सीधे तौर पर वार्ता पाकिस्तान और रूस के साथ ही बात की है। ऐसे में समझा जा रहा है कि पाकिस्तान की पहल पर ही तालिबान इस समझौते के लिए राजी हुआ है। 


रिहा होने वाले आतंकी कौन
तालिबानी कमांडर हाजी माली खान और हाफिज रशीद को भी रिहा किया गया है। इनमें जो सबसे बड़ा नाम है वह है, हक्कानी नेटवर्क के लीडर अनस हक्कानी का। अनस तालिबान के डेप्युटी हेड और हक्कानी नेटवर्क के लीडर सिराजुद्दीन का छोटा भाई है। हक्कानी नेटवर्क को इस समय अफगानिस्तान में सक्रिय तालिबान का सबसे खतरनाक धड़ा माना जाता है। पाकिस्तान की आईएसआई और सेना के साथ भी हक्कानी नेटवर्क के करीबी रिश्ते होने की बात कही जाती है।


पाकिस्तान के प्रभाव में रिहाई
राष्ट्रपति अशरफ गनी ने यह ऐलान जिस समय में किया है, उसे देखकर इस फैसले के पीछे पाकिस्तान का प्रभाव होने की बात की जा रही है। पाकिस्तान की इंटेलिजेंस एजेंसी (आईएसआई) और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ काबुल में मुलाकात के बाद अगले ही दिन यह ऐलान हुआ है। इससे पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने जुलाई में वॉशिंगटन के दौरे पर कहा था कि वह दोनों प्रफेसरों की रिहाई के लिए हरसंभव कोशिश करेंगे।


फैसले का असर तालिबान शांति वार्ता पर
इस फैसले का असर सिर्फ काबुल तक सीमित नहीं रहनेवाला है, इसके दूरगामी प्रभाव होंगे। अमेरिका और तालिबान के बीच शांति वार्ता सितंबर में अचानक ही खत्म करने का ऐलान कर दिया गया था। काबुल में तालिबान के बम धमाकों में एक अमेरिकी सैनिक की जान जाने के बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने तालिबान से वार्ता खत्म करने का ऐलान किया था। हालांकि, उसके बाद भी अमेरिका के दूत जलमय खलीलजाद से तालिबान के नेताओं की अनौपचारिक वार्ता हुई है।

राष्ट्रपति गनी की कुर्सी पर संशय
गनी सरकार का भविष्य भी संशय में है क्योंकि 28 सितंबर को हुए राष्ट्रपति चुनावों के नतीजे अभी तक घोषित नहीं किए गए हैं। शुरुआती नतीजे 14 नवंबर को आ सकते हैं। ऐसे हालात में उन्होंने पाकिस्तान के प्रभाव में तालिबानी कमांडरों की रिहाई का ऐलान किया है। पाकिस्तान के लिए जरूर यह अच्छी खबर है, लेकिन भारत के लिए इसे अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता। भारत के साथ अफगानिस्तान और खुद अशरफ गनी के भी अच्छे संबंध रहे हैं।