जयपुर, । पं. हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति ओम थानवी ने कहा कि विज्ञान जीवन को व्यवस्थित एवं तर्कशील बनाती है। हमें विज्ञान पत्रकारिता के माध्यम से विज्ञान को समाज की सेवा में लगाना होगा। श्री थानवी गुरुवार को यहां बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग एवं सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय विज्ञान पत्रकारिता कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
ओम थानवी ने कहा कि विज्ञान मनुष्य की मेधा की कसौटी के साथ में चुनौती भी है। यह केवल तकनीकी नहीं है, बल्कि मनुष्य के जीवन से बहुत नजदीक से जुड़ी हुई है। इसलिए हमें पत्रकारिता के माध्यम से विज्ञान को समाज की सेवा में लगाना है। हमारा संविधान हमें मौलिक कर्तव्य के रूप में समाज में मानववाद और वैज्ञानिक सोच विकसित करने की जिम्मेदारी देता है। यहीं से मीडिया की भूमिका शुरू होती है। मीडिया समाज का आइना ही नहीं है, बल्कि उसके पार है। मीडिया 21वीं सदी में समाज में पैदा हो रहे अंधविश्वास एवं अतार्किक सोच को रोकने का काम करे। तर्कशील एवं धर्मनिरपेक्ष समाज निर्माण के लिए अतार्किक कार्यों पर सवाल उठाएं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की शासन सचिव श्रीमती मुग्धा सिन्हा ने कार्यशाला के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमें संविधान की भावना के मुताबिक समाज में वैज्ञानिक सोच को विकसित करना होगा। इसके लिए जरूरी है कि विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे विभिन्न क्रियाकलापों और विभाग की योजनाओं एवं उपलब्धियों से आमजन को रूबरू कराया जाए। यह कार्य पत्रकारिता से ही संभव है। उन्होंने विज्ञान और पत्रकारिता की समान प्रकृति को रेखांकित करते हुए कहा कि दोनों ही जिज्ञासु विषय है। विज्ञान में अनुसंधान है तो पत्रकारिता जांच पड़ताल मांगती हैं इसलिए दोनों के साहचर्य से समाज को विज्ञान का समुचित फायदा मिलना संभव हो सकेगा। उन्होंने कहा कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग विज्ञान लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए विज्ञान पत्रकारिता पुरस्कार शुरू करने पर विचार कर रहा है।
सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के आयुक्त डॉ. नीरज कुमार पवन ने कहा कि सोशल मीडिया के युग में सकारात्मक एवं वैज्ञानिक सामग्री परोसना जरूरी है, अन्यथा समाज के दिग्भ्रमित होने की आशंका है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के नवाचारों एवं उपलब्धियों को आमजन तक बोलचाल की भाषा में पहुंचाना होगा। इससे लोग स्वयं से सवाल करेंगे, चीजों को देखने की जिज्ञासा पैदा करेंगे और तथ्यों का पुनर्सत्यापन कर असत्य एवं अतार्किक बातों को नकारना शुरू करेंगे। उन्होंने कहा कि आज का आयोजन वैज्ञानिक लेखनी को नई दिशा तय करने वाला साबित होगा।
कार्यशाला के प्रथम तकनीकी सत्र में विज्ञान संचार के रजिस्ट्रार डॉ. बी के त्यागी ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण, विज्ञान लेखन आदि विषयों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि अब वह समय आ चुका है कि यदि हमने अपने निर्णय वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नहीं किये तो शायद हम अपने अस्तित्व को ही खतरे मैं डाल देंगे। उन्होंने कहा कि आम आदमी से लेकर प्रशासनिक अधिकारी तक सभी के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण का महत्त्व है। उन्होंने बहुत से उदहारण देकर बताया कि किसी भी आपदा के समय एक जागरूक आम व्यक्ति उस आपदा से होने वाले खतरे को काफी कम कर सकता है, वहीं यदि कोई भी प्रशासनिक अधिकारी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अपना निर्णय करता है तो वह ज्यादा से ज्यादा लोगों की सहायता कर सकता है।
डॉ. त्यागी ने कहा कि विज्ञान का प्रयोग विकास के लिए होना चाहिए न कि केवल लाभ कमाने के लिये और यह मीडिया की जिम्मेदारी है कि उस तकनीक के साथ जुड़े हुए विपरीत प्रभावो के बारे में भी लोगों को जागरूक करे। श्री त्यागी ने कहा कि आज पूरी दुनिया पर्यावरण संकट से जूझ रही है, इसमें कहीं न कहीं लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण की कमी होना भी कारण है। उन्होंने कहा की जितनी जरूरत समस्याओं को सुलझाने के लिए नए शोध की है, उतनी ही जरूरत उसे लोगों तक पहुंचाने की भी है। डॉ. त्यागी ने विज्ञान लेखन की विभिन्न विधाओं के बारे में बताते हुए कहा कि आम आदमी को विज्ञान से जोड़ने के लिए विज्ञान को मनोरंजक और सरल तरीके से लोगों तक पहुँचाने की जरुरत है। उन्होंने प्रतिभागियों को विज्ञान के प्रसार प्रसार से जुडी केंद्र सरकार की योजनाओं के बारे में भी जानकारी दी।
विज्ञान फ़िल्म निर्माता हिमांशु मल्होत्रा तथा श्री राजेश अमरोही ने द्वितीय सत्र में विज्ञान फिल्मों के माध्यम से विज्ञान संचार विषय पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि फिल्मों के माध्यम से दर्शक जटिल विषय को भी आसानी से समझ सकते हैं इसलिए आमजन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करने में फिल्में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। उन्होंने विज्ञान फिल्मों की स्कि्रप्ट लेखन की विधाओं के बारे में जानकारी दी। श्री मल्होत्रा ने कहा कि लोगों को आकर्षित करने के लिए फ़िल्म का केवल सूचनात्मक होना ही जरूरी नहीं है बल्कि उसका रोचक होना भी आवश्यक है।
इस अवसर पर योग विज्ञान पर आधारित फ़िल्म सत्यम का प्रदर्शन भी किया गया। उन्होंने कहा कि फ़िल्म बनाने के लिए सबसे ज्यादा जरुरी क्रिएटिविटी और विज़न है। बिना पैसे के भी फिल्ममेकर बना जा सकता है और अब सोशल मीडिया के रूप में अब हमारे पास बहुत से प्लेटफॉर्म उपलब्ध हैं, जहाँ हम ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँच सकते हैं।
कार्यशाला के दूसरे दिन शुक्रवार को टेलीविज़न विज्ञान कार्यक्रम के लिए स्कि्रप्ट राइटिंग, मोबाइल के माध्यम से विज्ञान फ़िल्म निर्माण तथा हाउ टू डिटेक्ट फ़ेक न्यूज़ आदि विषयों पर तकनीकी सत्रों का आयोजन किया जाएगा।
सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग के निदेशक अभिषेक भागोटिया ने अथितियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यशाला में जनसम्पर्क अधिकारी, पत्रकार, रिसर्च स्कॉलर एवं पत्रकारिता से जुड़े विद्यार्थी उपस्थित थे।