..तो 1992 से आगे बढ़ेगी, नई छवि गढ़ेगी अयोध्या


लखनऊ
यूपी सहित देश की सियासत में तीन दशक तक 'राज' करने वाले अयोध्या विवाद को सुप्रीम कोर्ट ने अंजाम तक पहुंचा दिया है। अब अयोध्या की रंगत बदलने और 'संगत' बने रखने की जिम्मेदारी योगी सरकार के जिम्मे आ गई है। मंदिर निर्माण से लेकर मस्जिद के लिए जमीन तलाशने तक में इनकी अहम भूमिका होगी। भावनाओं के बीच 'संतुलन' बनाने की चुनौती से भी पार पाना होगा। सरकार की नजर अब अयोध्या को 1992 से आगे निकालकर नई छवि गढ़ने पर है।


ट्रस्ट में 'ट्रस्ट' कायम रखने की चुनौती
मंदिर निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को तीन महीने में ट्रस्ट गठित करने को कहा है। योगी सरकार की राय शुमारी इसमें अहम होगी। कोर्ट ने हालांकि मंदिर के संचालन और अन्य भूमिकाओं के लिए ट्रस्ट बनाने का आदेश देकर राह आसान भी की है। जानकारों का कहना है कि फैसले के बाद स्थानीय स्तर पर अलग-अलग शाखाओं में सबसे अधिक 'संघर्ष' मंदिर प्रबंधन में भागीदारी को लेकर होता। ट्रस्ट बनने से इससे निजात मिल गई है। लेकिन, इसमें अखाड़ों से लेकर पंथों की भागीदारी को लेकर अभी रार तेज होगी। सीएम के खुद संत होने के चलते अपेक्षाएं भी अधिक हैं।


रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास ने फैसले के बाद प्रतिक्रिया में कहा है कि ट्रस्ट तो यहां पहले से ही बना हुआ है। इसलिए ट्रस्ट को लेकर 'ट्रस्ट' बनाना भी आसान नहीं होगा। काशी विश्वनाथ मंदिर के बाद यूपी में यह दूसरा धर्मस्थल होगा जो ट्रस्ट से संचालित होगा। मथुरा और विध्यांचल में सरकार ने इसके लिए कोशिश शुरू की थी लेकिन विरोध के चलते मामला आगे नहीं बढ़ सका।

मंदिर को 'आकार' व मस्जिद को जमीन
बीजेपी और खुद सीएम योगी आदित्यनाथ के एजेंडे पर अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण टॉप एजेंडे पर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने उसकी राह खोल दी है। मस्जिद के लिए जमीन तलाशने की जिम्मेदारी केंद्र और प्रदेश दोनों के ही जिम्मे डाली गई है। लेकिन, तकनीकी तौर पर प्रदेश सरकार ही जमीन तलाशती और उपलब्ध कराती है। अयोध्या में मुस्लिम पक्ष की इच्छा के अनुसार जमीन तलाशना व उसके स्थानीय गतिरोधों को भी दूर करने की चुनौती सरकार के सामने होगी।


'स्वीकार्यता' को बढ़ाने का मौका
खासकर फैसले के बाद जिस तरह पर्सनल लॉ बोर्ड की प्रतिक्रिया आई है उसके बाद मस्जिद निर्माण के लिए मुस्लिम पक्ष को तैयार करना भी मशक्कतपूर्ण होगा। जानकारों का कहना है कि हिंदुवादी संगठनों के भी इस मुद्दे पर विरोध के सुर उठने के आसार अभी थमे नहीं हैं। हालांकि, योगी के सामने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के हिसाब से मुस्लिम पक्ष को संतुष्ट कर अपनी 'स्वीकार्यता' को बढ़ाने का मौका मिलेगा।

रंगत बदलने में जुटेगी सरकार, ब्रैंडिंग पर काम
सरकार अब मंदिर निर्माण की प्रक्रिया, डिजाइन व फंडिंग तीनों के लिए सरकार जुटेगी। सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या को 1992 की पहचान से उबारकर उसकी नई छवि गढ़ने का मौका दिया है। सरकार इसे मौके को हाथ से नहीं जाने देगी। दीपोत्सव के जरिए अयोध्या को उत्सवधर्मी बनाने की कवायद योगी सरकार पहले ही कर चुकी है। अब मंदिर निर्माण और पूरे अयोध्या के आधारभूत ढांचे के विकास पर सरकार तेजी से जुटेगी।

यह भी होगा फायदा
सरयू के किनारे विश्व की सबसे ऊंची राम प्रतिमा प्रॉजक्ट के साथ अब मंदिर निर्माण के अवसर के जरिए सरकार की तैयारी अयोध्या की विश्व पर्यटन मानचित्र पर 'ब्रैंडिंग' की है। पर्यटन विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि विकास के हमने कई प्रॉजक्ट अयोध्या में शुरू किए हैं लेकिन मंदिर के बिना सारी कवायद अधूरी थी। अब अयोध्या इसकी मूल पहचान से जुड़ेगी तो इसे यूपी के सबसे आकर्षक पर्यटक व धार्मिक स्थल के तौर पर बदलना आसान होगा।

काम के साथ ही 'इनाम' का भी मौका
सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक चली इस लड़ाई के समाधान के बीच इसके सियासी मायने भी हैं। जिस राममंदिर आंदोलन ने भाजपा की सियासी नींव तैयार की थी, उसके समाधान और उसके बाद होने वाले काम के 'इनाम' पर भी नजर होगी। सीएम योगी आदित्यनाथ ने खुद शिलापूजन की तस्वीर शेयर करते हुए महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ का जिक्र किया है। राममंदिर आंदोलन में गोरक्षपीठ की अगुवाई और उसके रिश्ते को ताजा करने की यह कवायद मानी जा रही है। जानकारों का कहना है कि 2022 के विधानसभा चुनाव के पहले अयोध्या की रंगत बदलकर सरकार चुनावी मंच से इस मेहनत के लिए पीठ थपथपाने की भी अपील करेगी।