नागरिकता संशोधन बिल पर चर्चा में नेहरू-लियाकत समझौते का जिक्र, 1970 में भी संसद में गूंजा था यह समझौता


नई दिल्ली
नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 लोकसभा से पास हो चुका है। गृह मंत्री अमित शाह ने इस बिल के दायरे से मुस्लिम शरणार्थियों को बाहर रखने के औचित्य पर तर्क देते हुए नेहरू-लियाकत समझौते का जिक्र किया था और कहा था कि भारत ने तो इस समझौते का गंभीरता से पालन किया, लेकिन पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बर्बरता होती रही। फिर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी मंगलवार को नागरिकता बिल की ओलचना करते हुए भारत-पाकिस्तान के बीच हुए द्विपक्षीय समझौते का जिक्र किया था। उन्होंने इस समझौते का नाम तो नहीं लिया, लेकिन साफ है कि उन्होंने नेहरू-लियाकत पैक्ट की ही बात की थी।


दरअसल, इस समझौते के तहत यह तय हुआ था कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही अपने-अपने देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों का संरक्षण करेंगे। इस समझौते को लेकर कांग्रेस और बीजेपी पहली बार आमने-सामने नहीं आई है। पहले भी कई बार नेहरू-लियाकत समझौते को लेकर संसद में खासी चर्चा हो चुकी है। 1970 में भी कांग्रेस समझौते को लेकर अपने स्टैंड पर डटी थी जबकि तब जनसंघ और अब बीजेपी का स्टैंड समझौते को लेकर काफी तल्ख रहा है।

1970 में हुई थी चर्चा, 1971 में बना बांग्लादेश
नेहरू-लियाकत समझौते को लेकर 1970 में चर्चा के दौरान संसद का माहौल गरम हो गया था। राज्यसभा में 7 मई, 1970 को तत्कालीन विदेश मंत्री दिनेश सिंह ने समझौते का समर्थन करते हुए कहा था, 'पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न को लेकर भारत ने लगातार अपनी चिंता जाहिर की है। पाकिस्तान में रह रहे धार्मिक अल्पसंख्यकों के समान अधिकार, आजादी और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत हमेशा ही पाकिस्तान पर दबाव बनाता रहा है।' इस संसदीय चर्चा के एक साल बाद 1971 में ही पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश के रूप में अलग देश का निर्माण हुआ था।


पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी सदन में दिया था भाषण
उस वक्त राज्यसभा के सदस्य रहे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी इस डिबेट में हिस्सा लिया था। अपने भाषण में मुखर्जी ने बताया था कि अंडमान-निकोबार द्वीप पर रह रहे तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के सामने भारत की तरफ से कौन-कौन सी बाधाएं हैं। तत्कालीन विदेश मंत्री दिनेश सिंह ने समझौते को खत्म किए जाने के सुझाव को रद्द करते हुए कहा था कि यह पाकिस्तान के लिए अल्पसंख्यकों पर अत्याचार का एक और बहाना बन जाएगा।


इंदिरा के विदेश मंत्री ने समझौते को बताया था जरूरी
तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार में विदेश मंत्री दिनेश सिंह ने कहा, 'पिछले 20 साल से पाकिस्तान से अल्पसंख्यकों का पलायन कर भारत लौटने का क्रम जारी है। मैं इस समझौते को मृत घोषित करने में कोई दूरदर्शी प्रभाव नहीं देख पा रहा हूं। यह पाकिस्तान के लिए एक और मौका होगा कि वह खुले तौर पर अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करे। फिलहाल हम समझौते के कारण ही सही, लेकिन पाकिस्तान पर दबाव बनाने में सक्षम हैं।'


जनसंघ सांसद ने समझौते का श्रेय पटेल को दिया था
इस चर्चा में जनसंघ की ओर से भाई महावीर सिंह ने हिस्सा लिया था। उन्होंने नेहरू-लियाकत पैक्ट का श्रेय सरदार पटेल को देते हुए कहा था, 'नेहरू-लियाकत समझौता सरदार पटेल की कूटनीति के कारण ही संभव हो सका। वह पटेल ही थे जिन्होंने पाकिस्तान को समझाया कि एकतरफा ट्रैफिक नहीं चल सकता। पाकिस्तान को उसकी भाषा में बखूबी जवाब दिया जा सकता है। अगर पाकिस्तान अपना व्यवहार दुरुस्त नहीं कर सकता है तो उसे इसके परिणाम भुगतने होंगे।'


जनसंघ के अल्पसंख्यकों के सुझाव को कांग्रेस ने किया खारिज
तत्कालीन विदेश मंत्री ने पाकिस्तान से अल्पसंख्यकों के पलायन के विरोध में भारत में भी ठीक वैसा ही बर्ताव किए जाने का विरोध किया था। उन्होंने कहा था, 'हम पाकिस्तान का जवाब देने के लिए अपने देश के अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित नहीं कर सकते हैं। भारत की जिम्मेदारी इसके प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा सुनिश्चित करने की है। अगर हम भी पाकिस्तान की तरह करने लगें तो भारत के इतिहास में यह एक बेहद दुखद दिन होगा।'