सुप्रीम कोर्ट पहुंचा नागरिकता बिल की संवैधानिकता का सवाल, मुस्लिम लीग ने दी याचिका


नई दिल्ली
नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 की संवैधानिकता का सवाल सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। केरल का राजनीतिक दल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने सुप्रीम कोर्ट में रिट पिटिशन दायर कर विधेयक को चुनौती दी है। सिटिजनशिप (अमेंडमेंट) बिल (CAB) को लोकसभा के बाद कल राज्यसभा ने भी मंजूरी दे दी। अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद नागरिकता कानून, 1955 में संबंधित संशोधन हो जाएगा जिससे तीन पड़ोसी इस्लामी देशों- पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होकर भारत की शरण में आए गैर-मुस्लिम धर्मावलंबियों को आसानी से नागरिकता मिल जाएगी।


मुस्लिम लीग समेत बिल का विरोध करने वाले तमाम पक्ष इसे धार्मिक आधार पर विभाजनकारी बता रहे हैं। मुस्लीम लीग ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा है कि यह धर्म के आधार पर भेदभावकारी है। साथ ही, दावा किया जा रहा है कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत 'विधि के समक्ष समता के अधिकार' की अवहेलना करता है। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट में आइयूएमल की इस याचिका पर पैरवी कर सकते हैं। 


9 दिसंबर को लोकसभा और फिर 11 दिसंबर को राज्यसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान भी इसके गैर-संवैधानिक होने के तर्क दिए गए थे। कांग्रेस समेत तमाम विरोधी सांसदों ने इसे धार्मिक आधार पर विभेदकारी बताते हुए भारतीय संविधान की मूल आत्मा के खिलाफ बताया था। उनका कहना है कि भारत का संविधान धर्म के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव की अनुमति नहीं देता है और इस संशोधन विधेयक का आधार ही धर्म को बनाया गया है।

हालांकि, सरकार का कहना है कि कोई भी देश हर किसी को नागरिकता नहीं देता है, इसके लिए कुछ शर्तें होती ही हैं। नागरिकता संशोधन विधेयक लाने का मकसद किसी की भारतीय नागरिकता छीनने का नहीं, बल्कि धार्मिक उत्पीड़न के शिकार पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों को आसानी से भारत की नागरिकता देने का है। चूंकि विदेशियों को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन की सामान्य प्रक्रिया पर नागरिकता बिल का कोई असर नहीं होगा, इसलिए इसे धार्मिक आधार पर भेदभावकारी बताना गलत है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में मुस्लिम विरोधी अजेंडे के आरोप पर सफाई में कहा कि मोदी सरकार ने अब तक के छह वर्षों के कार्यकाल में 566 मुसलमानों को नागरिकता दी ही। शाह ने कहा कि विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14 की अवहेलना इसलिए नहीं करता है क्योंकि इस अनुच्छेद में भी खास लोगों/समुदायों के समता के अधिकार का संरक्षण करने को भी कहता है।


क्या कहता है आर्टिकल 14
संविधान का अनुच्छेद 14 कहता है, 'राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।'

इस अनुच्छेद को स्पष्ट रूप से दो भागों में बांटा है। एक भाग राज्य को किसी भी व्यक्ति को 'विधि के समक्ष समता' के अधिकार से वंचित नहीं करने की कड़ी हिदायत देता है तो लगे हाथ दूसरा भाग यह कहता है कि राज्य को स्पष्ट निर्देश देता है कि वह 'विधियों के समान संरक्षण' से किसी भी नागरिक को वंचित नहीं करे।

'विधि के समक्ष समता' का प्रावधान किसी भी प्रकार के विभेद को प्रतिबंधित करता है। यह एक नकारात्मक अवधारणा है। वहीं, 'विधियों के समक्ष समान संरक्षण' का प्रावधान राज्य को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह अपने सभी नागरिकों में समानता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न परिस्थितियों में निश्चित व्यक्ति, समुदाय अथवा समूह को विशेष सुविधाएं दे। यानी, इसकी अवधारणा सकारात्मक है। इस तरह अनुच्छेद 14 का निहितार्थ यह है राज्य समान क्षमता के नागरिकों के साथ एक जैसा व्यवहार करे जबकि सुविधाहीन वर्ग को विशेष सुविधा प्रदान कर उसे दूसरों के बराबर ला खड़ा करे।

गृह मंत्री अमित शाह ने इसी आधार पर विपक्षी सांसदों से पूछा था कि क्या आर्टिकल 14 में मिले समानता का अधिकार के मद्देनजर अल्पसंख्यकों को दिया जा रहा विशेष अधिकार असंवैधानिक है।