कोलकाता
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में राजधानी दिल्ली सहित देश के अनेक राज्यों में धरना-प्रदर्शन चल रहे हैं। प्रदर्शनकारी सीएए के प्रावधानों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। इसी के चलते पिछले दिनों दिल्ली में हिंसा हुई थी, जिसमें 40 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवा दी। इस बीच, बीजेपी की बंगाल यूनिट से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अगले महीने यानि अप्रैल में नए नागरिकता कानून के नियम तय किए जा सकते हैं। पार्टी सीएए पर जनता के फीडबैक का इंतजार कर रही है। इसके परिणाम देखने के बाद आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।
शाह के पास तैयार रखा है ड्राफ्ट!
गत रविवार को कोलकाता आए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ बंगाल बीजेपी के नेताओं की एक बैठक हुई थी। बताया जा रहा है कि सीएए के नियमों से जुड़ा ड्रॉफ्ट अमित शाह के पास तैयार रखा है लेकिन अभी वह करीब एक महीने का इंतजार कर रहे हैं। दरअसल इनदिनों बीजेपी और आरएसएस से जुड़े कार्यकर्ता नागरिकता संशोधन कानून पर आम जनता का फीडबैक लेने में व्यस्त हैं। फीडबैक देखने के बाद अप्रैल में सीएए के नियम तय किए जा सकते हैं। यह फीडबैक बंगाल के लिए बहुत मायने रखता है क्योंकि यहां के शरणार्थी सीएए नियमों का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं ताकि कुछ चीजें स्पष्ट हो सकें।
भ्रम में शरणार्थी परिवार
उदाहरण के लिए, सवाल उठ रहे हैं कि क्या विभाजन के शुरुआती वर्षों के दौरान पूर्वी पाकिस्तान से बंगाल आकर बसे शरणार्थी परिवार भी सीएए के तहत नागरिकता पाने के योग्य हैं ? केंद्र सरकार के कर्मचारी और बेलियाघाट निवासी अपरूप मुखर्जी कहते हैं, 'मेरे पिताजी 1952 में पूर्वी पाकिस्तान से आए और कोलकाता में बस गए, उनकी 2005 में मृत्यु हो गई। मेरा जन्म कोलकाता में 1960 में हुआ। क्या मुझे सीएए के तहत नागरिकता पाने के लिए आवेदन करना चाहिए?'
प्रारंभिक कट-ऑफ तारीख स्पष्ट नहीं'
गौरतलब है कि सीएए पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के सताए गए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों पर लागू होता है, जो 31 जनवरी, 2014 को या उससे पहले भारत आए थे। अधिवक्ता मोल्यो दास का कहना है, 'सीएए प्रारंभिक कट-ऑफ तारीख के बारे में स्पष्ट नहीं है, यहां भ्रम की स्थिति है। जब केंद्र सरकार ने घोषणा की थी कि जो लोग 25 मार्च, 1971 से पहले भारत आए थे, वे यहां के नागरिक हैं, इसके बाद सीएए के तहत इन शरणार्थियों को आवेदन करने की आवश्यकता है। दास के मुताबिक, प्रचलित कानून के तहत 1950 से 1 जुलाई, 1987 के बीच भारत में पैदा हुए लोग जन्म से ही नागरिक हैं, भले ही उनके माता-पिता पूर्वी पाकिस्तान से यहां आकर बसे हों। दास कहते हैं, '1 जुलाई, 1987 के बाद यहां पैदा हुए लोगों को यह साबित करना पड़ेगा कि उनके माता-पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक है।'