कोरोना महामारी या गिरती विकास दर, सरकार कहां फोकस करे?


नई दिल्ली
कोरोना का प्रकोप भारत में भी तेजी से फैल रहा है। अब तक 84 मामले सामने आ चुके हैं और दो लोगों की मौत भी हो चुकी है। कोरोना के कारण शेयर बाजार संकट के दौर से गुजर रहा है। निवेशकों के अब तक 44 लाख करोड़ रुपये डूब चुके हैं। दूसरी तरफ घटती विकास दर से भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से ही जूझ रही है। ऐसे में आर्थिक विशेषज्ञों ने सरकार को सलाह दी है कि वह गिरती विकास दर की जगह कोरोना वायरस की दहशत को दूर करने पर ध्यान देना चाहिए।


निवेशकों में विश्वास पैदा करने की जरूरत
उनका मानना है कि देश में कोरोना वायरस के इलाज के लिए जरूरी उपायों और ढांचागत सुविधाओं को बढ़ाकर आम जनता और निवेशकों में विश्वास पैदा करने की जरूरत है। इन विशेषज्ञों की राय में इस समय निवेशकों के मन में कोरोना वायरस का खौफ घर कर गया है। चीन से शुरू हो कर दुनिया के 100 से अधिक देशों में इस वायरस का संक्रमण फैल चुका है। निवेशकों के डगमगाते विश्वास की वजह से ही भारत और दुनिया के प्रमुख शेयर बाजारों में 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद इस समय सबसे अधिक उठा-पटक है।


फिस्कल डेफिसिट से फोकस हटाए सरकार
नैशनल इंस्टिटयूट ऑफ पब्लिक फाइनैंस ऐंड पॉलिसी (NIPFP) के प्रफेसर एन आर भानुमूर्ति ने कहा, 'सरकार को राजकोषीय घाटा, आर्थिक वृद्धि और व्यापार घाटा जैसी चिंताओं को छोड़कर इस समय केवल जनता के स्वास्थ्य की सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए। दवा उद्योग में उत्पादन बढ़ाने के प्रबंध किए जाने चाहिए, अस्पतालों में कोरोना वायरस के इलाज की व्यवस्था व्यापक पैमाने पर सुविधा की जानी चाहिए, लोगों में विश्वास पैदा किया जाना चाहिए कि देश इस वायरस के संक्रमण से निपटने में समर्थ है। यह विश्वास पैदा होते ही इस समय अर्थव्यवस्था को लेकर जो संकट दिख रहा है वह अपने आप ठीक हो जायेगा।'

लंबा चला कोरोना तो बड़ी मुसीबत
कोरोना वायरस से मचे कोहराम को लेकर प्रख्यात अर्थशास्त्री स्वामीनाथन अय्यर ने भारत को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर इस वायरस का प्रकोप एक साल तक काबू में नहीं आया तो भारत बड़ी मुसीबत में फंस सकता है। उनका कहना है कि अगर कोरोना का प्रकोप तीन महीने तक रहा तो तात्कालिक मंदी आएगी। अगर यह छह महीने तक चला तो अर्थव्यवस्था पर लंबा असर दिखाई देगा।

2008 से ज्यादा खतरनाक स्थिति की संभावना
अय्यर ने कहा, 'तीसरा परिदृश्य यह बनता है कि अगर यह नौ महीने तक काबू में नहीं आया, तो हालात 1918-19 के स्पेनिश फ्लू जैसा होगा, जिसमें 20 करोड़ लोग संक्रमित हुए थे और पांच करोड़ लोगों की जान गई थी। आज दुनियाभर में आबादी की जो स्थिति है, उसमें अरबों लोग संक्रमित होंगे और करोड़ों लोगों की जानें जाएंगी और आर्थिक नुकसान बेहद तगड़ा होगा। यह नुकसान साल 2008 में हुए नुकसान से अलग होगा, जो महज एक वित्तीय संकट था।'अगर हालात एक साल तक काबू में नहीं आया तो वित्तीय क्षेत्र भी प्रभावित होगा। दिवालिया होने वालों की तादाद बहुत बढ़ जाएगी। कई बैंकों के लिए कर्ज एक बेहद गंभीर मुद्दा बन जाएगा, क्योंकि कम इंट्रेस्ट रेट का फायदा उठाकर कॉर्पोरेट सेक्टर भारी मात्रा में कर्ज ले रहे हैं।'