मध्य प्रदेश सियासी संकट: शिवराज सिंह चौहान के अलावा ये नेता भी हैं मुख्यमंत्री पद की रेस में


सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मप्र विधानसभा में आज कमलनाथ सरकार का फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश देने के बाद बीजपी में नई सरकार के गठन की आहट शुरू हो गई है। फिलहाल अभी तक तो शिवराज सिंह चौहान का ही नाम सबसे आगे चल रहा है। लेकिन पार्टी नेता किसी का भी नाम लेने से बच रहे हैं। पार्टी नेताओं की मानें तो बीजेपी आलाकमान ही इस बारे में फैसला करेगा। फिलहाल ऐसे वक्त पर शिवराज सिंह चौहान के सरकार बनाने की पूरी उम्मीद है।


मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश की राजनीति के सबसे दिग्गज नेता माने जाते हैं। प्रदेश में इनको 'मामा' कहकर पुकारा जाता है। मुख्यमंत्री पद की रेस में सबसे आगे इन्हीं का नाम है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को तो सीएम पद का दावेदार माना ही जा रहा है। 13 साल तक प्रदेश की बागडोर संभालने वाले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चौथी बार भी मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल सकता है। 



दूसरा बड़ा नाम है केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का। कहा जाता है कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार तख्ता पलट करने में तोमर का सबसे बड़ा हाथ रहा है। इस कद्दावर नेता ने इस बार सियासत की ऐसी बिसात बिछाई कि भाजपा कांग्रेस को तोड़ने में कामयाब हो गई। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर हैं। जमीन से जुड़े नेता नरेंद्र सिंह तोमर का मध्यप्रदेश के ग्वालियर-चंबल संभाग में काफी प्रभाव है और कांग्रेस के ज्यादातर बागी विधायक भी इन्हीं संभाग से आते हैं, जिनके बगावत पर उतरने के कारण कमलनाथ सरकार संकट में आ गई है। 



बीजेपी की ओर से तीसरा बड़ा नाम है नरोत्तम मिश्रा का। नरोत्तम मिश्रा पर हालांकि ई टेंडरिंग घोटाले की जांच चल रही है। कहा जाता है कि मध्य प्रदेश भाजपा का ये मैनेजमेंट संभालते हैं।नरोत्तम की भूमिका भी अहम मिश्रा पहले भी भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष और मप्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में शामिल रहे हैं। कुछ समय पहले तक नरोत्तम मिश्रा और शिवराज सिंह चौहान के बीच गहरे मतभेद रहे हैं, लेकिन सरकार के लिए जोड़-तोड़ के दौरान दोनों नेताओं के बीत समझौता हो गया है। 



मध्य प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव का नाम भी बीजेपी के बड़े नेताओं में शुमार है। भार्गव को शिवराज का करीबी माना जाता है। पहले नरोत्तम मिश्रा को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी जा रही थी लेकिन बाद में गोपाल भार्गव का चुनाव किया गया। 


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