कोरोना वायरस लॉकडाउन (coronavirus lockdown) की सबसे बुरी मार प्रवासी मजदूरों पर पड़ी है। नौकरी गई, खाने को कुछ नहीं, ऐसे में उनके पास कोई साधन न मिलने पर पैदल ही घर जाने का चारा बचा था। ऐसे ही एक मजदूर की कहानी हम लेकर आए हैं जो 500 किलोमीटर का सफर तय करके अपने घर पहुंच चुके हैं।
500km पैदल सफर, बेटे संग दिल्ली से घर पहुंचे दयाराम कुशवाहा की कहानीऊपर जिन दो तस्वीरों को आप देख रहे हैं वे दयाराम कुशवाहा की हैं। पहली नजर में दोनों तस्वीरें एक जैसी लग रही होंगी लेकिन दयाराम के चेहरे को गौर से देखेंगे तो पता चलेगा कि पहली तस्वीर में उनके चेहरे पर खौफ और दूसरी में घर पहुंचने की खुशी है।
...घर पहुंच पाऊंगा या नहीं?
पैदल चलता शख्स और पीठ पर 5 साल का बच्चा। दयाराम की यह तस्वीर 26 मार्च को दिल्ली में दी गई। उस दौरान वह बच्चे और पत्नी के साथ पैदल चल रहे थे। चेहरे पर खौफ और चिंता यही थी कि सही-सलामत घर पहुंच पाएंगे या नहीं।
500 किलोमीटर का सफर तय कर घर पहुंचे
दयाराम कुशवाह दिल्ली में मजदूरी करते थे और उन लोगों में शामिल थे जो कोरोना वायरस लॉकडाउन के बाद पैदल अपने घर को निकल गए। दयाराम कुशवाह करीब 500 किलोमीटर का सफर तय करके मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड पहुंच चुके हैं।
चेहरे का सुकून बयां करता है सबकुछ
दिल्ली से चलनेवाले कितने ही ऐसे लोगों के किस्से आए हैं कि लंबे सफर, भूख से उन्होंने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। सभी परेशानियों का सामना करने के बाद घर पहुंचे दयाराम के चेहरे का संतोष साफ बताता है कि उन्हें इसकी कितनी खुशी है।
...बेटा घर आ गया, बहुत है
इनसे मिलिए। ये हैं दयाराम के माता-पिता। बेटा जो ऐसे संकट के बीच कहीं और फंसा हो उसके घर पहुंचने की खुशी इनसे ज्यादा किसे हुई होगी।
घर जो छोटा सही, पर अपना है
यह तस्वीर में दिख रहा घर दयाराम का है। एक वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में दयाराम कहते हैं ऐसा नहीं है कि मुझे दिल्ली से प्यार है। मुझे तो जिंदा रहने के लिए पैसा चाहिए। अगर वह मुझपर हो तो मैं यहीं रहूं। यह मेरा घर है।
दिल्ली में ईंट ढुलाई करते थे दयाराम
28 साल के दयाराम और उनकी पत्नी दिल्ली में ईंट की ढुलाई का काम करते थे। उन्होंने बताया कि पैसा ही वहां जाने की मजबूरी था। महीनेभर में वह करीब 8 हजार रुपये बचाकर घर भेज देते थे।
फिलहाल खेतों में काम कर रहे दयाराम
दयाराम फिलहाल घर पर खेतों में काम कर रहे हैं। वहां गेहूं की कटाई चल रही है। लेकिन पैसों की किल्लत बनी हुई है क्योंकि कटाई की पेमेंट उन्हें नहीं मिली है।