अपनों ने ही खोला साद की तानाशाही का चिट्ठा


नई दिल्ली
तबलीगी जमात के मुखिया मौलाना मोहम्मद साद पर पुलिस का शिकंजा कसता जा रहा है। उनसे जुड़ी प्रॉपर्टी पर छापेमारी के बीच कुछ पुलिस को कुछ ऐसी चीजें पता लगी हैं जो बताती हैं कि मौलाना साद पिछले कई सालों से तबलीगी जमात और मरकज को अपने हिसाब से तानाशाह की तरह चला रहे थे। इसके खिलाफ उनके साथ काम करनेवालों ने भी कई बार आवाज उठाई लेकिन कोई सुनवाई ही नहीं हुई।
एक तरफ पुलिस ने गुरुवार को तबलीगी जमात के मुखिया मौलाना मोहम्मद साद के शामली स्थित फार्म हाउस पर छापेमारी की। दूसरी तरफ पुलिस और ईडी को कुछ ऐसे दस्तावेज हाथ लगे हैं जिनसे साद की तानाशाही का पता चलता है। साद या तबलीगी जमात से जुड़े कई लोगों ने पिछले 5 सालों में 7 ऐसी लिखित शिकायतें अंदरखाने दी थीं लेकिन हुआ कुछ नहीं।


साद पर आरोप हैं कि इस 95 साल पुराने संगठन को वह अपनी मर्जी से चलाने की कोशिश कर रहे थे। पारदर्शिता को उन्होंने खत्म कर दिया था और कई मुद्दों पर वह उस रास्ते से ही भटक गए जो इस संगठन से शुरुआती नेताओं ने तय किया था।


'सलाह नहीं, देते सिर्फ ऑर्डर'
साद पर आरोप लगे कि उन्होंने बिना किसी से सलाह किए मरकज और तबलीगी जमात के लोगों को पढ़ाए जाने वाला सलेब्स की बदल दिया। अहम कार्यक्रमों को निजामुद्दीन मरकज में ही करने पर जोर दिया। साद पर आरोप लगे कि वह सलाह करने की जगह ऑर्डर देते हैं। साथ ही संगठन के वित्त मामलों में पारदर्शिता की कमी की बात कही गई थी। अब जांच में लगी ईडी और दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम को उन इंटरनल शिकायतों की कॉपीज मिली हैं।


मिली शिकायतों में एक अमानतुल्लाह चौधरी की है। वह तबलीगी जमात वर्किंग कमिटी के पूर्व सदस्य हैं। 2015 की अपनी शिकायत में चौधरी लिखते हैं कि पहले कोषाध्यक्ष और मैनेजर अलग-अलग होते थे। इतना ही नहीं अब मरकज की कमाई और खर्च का कोई हिसाब नहीं रखा जाता। 2016 में भी 7 लोगों के सदस्य ने लिखित शिकायत दी थी। इसमें गोधरा के मौलाना इस्माइल ने लिखा था कि मरकज किस दिशा में जा रही है इसकी सीनियर मेंबर्स को चिंता है।


2016 में ही चेन्नै, अलीगढ़, बेंगलुरु और दिल्ली से साद के खिलाफ शिकायतें आईं। लिखा था कि मौलाना साद सिर्फ मस्जिदों में जुटने पर जोर देते हैं, जबकि बाहर निकलकर जमातियों को क्या करना है इसपर नहीं।