नई दिल्ली
यूं तो किसी भी कमोडिटी की कीमत तय करने में डिमांड और सप्लाई की महत्वपूर्ण भूमिका होती है लेकिन कच्चा तेल अकेली ऐसी कमोडिटी है, जिसकी कीमतों पर राजनीति ज्यादा हावी रहती है। हालांकि अभी इसकी कीमतों का रेकॉर्ड पहुंचना कुछ अलग ही है। कोरोना संकट की वजह से दुनियाभर की अर्थव्यवस्था में ठहराव आ गया है और पानी के मोल भी कोई कच्चा तेल खरीदने को तैयार नहीं हैं।
ब्रेंट क्रूड और WTI से पहले शुरू हो गई थी कच्चे तेल की कहानी
यूं तो आज दुनियाभर में कच्चे तेल के कारोबार में ब्रेंट क्रूड और डब्ल्यूटीआई क्रूड बेंचमार्क माना जाता है। लेकिन ये सब तेल के क्षेत्र हाल की खेाज हैं। दुनिया में परंपरागत रूप से पश्चिम एशिया में खाड़ी के कुछ देश और कुछ अन्य तेल उत्पादक देशों का ही दबदबा रहा है।
बाकू से शुरू हुई है कच्चे तेल की कहानी
कच्चे तेल के महत्व से पहले मानव अपरिचित थे। लेकिन सन 1837 में बाकू में पहला कमर्शल रिफाइनरी लगा जहां कच्चे तेल से पैराफिन निकाला जाता था। इसका इस्तेमाल दीया जलाने और घरों को गर्म करने के लिए हीटिंग ऑइल के रूप में होता था। बाद में सन 1846 में पहला आधुनिक तेल कुआं बना, जो 21 मीटर की गहराई से तेल निकालता था। उस समय बाकू में ही दुनिया के तेल उत्पादन का 90% से अधिक उत्पादन होता था।
अमेरिका ने बादशाहत कायम कर ली
बाकू में कच्चे तेल के वाणिज्यिक उत्पादन के दो दशक बाद अमेरिका में ऐसा हो पाया। देखा जाए तो बाकू के बाद पोलैंड के बोर्का (1854), बुखारेस्ट, रोमानिया (1857), ओन्टेरियो, कनाडा (1858) और पेंसिल्वेनिया, यूएसए (1859) में वाणिज्यिक तेल के कुएं खुले। इसके बाद तो स्थिति बदल गई और पेंसिल्वेनिया स्पष्ट रूप से नायक बन गया और कुछ वर्षों के भीतर ही दुनिया के लगभग आधे कच्चे तेल का उत्पादन वहां हो रहा था। उसी समय इसकी कीमतों में तेजी भी दिखाई दी। सन 1861 में यह 0.49 डॉलर प्रति बैरल बिक रहा था जो कि 1865 में 6.59 डॉलर प्रति बैरल पर पहंच गया।
आधुनिक तेल उद्योग का उदय
कच्चे तेल के आधुनिक उद्योग का उदय सन 1870 में ओहियो में हुआ था जबकि जॉन डी रॉकफेलर ने स्टैंडर्ड ऑयल कंपनी की स्थापना की थी। यह कंपनी तेजी से प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरी। इसने पूरे देश में कारोबार का तो विस्तार किया ही, चीन सहित विदेशी बाजारों में निर्यात भी करने लगी। यह इतनी सफल हुई कि 1890 तक, इसने अमेरिका में लगभग 90% रिफाइंड ऑइल के बाजार पर कब्जा कर लिया।
ओपेक के गठन के बाद हुई राजनीति तेज
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जब उद्योग धंधे चलने शुरू हुए तो ईरान, इंडोनेशिया, सउदी अरब आदि तेल उत्पदक देशों ने तेल के कुओं का राष्ट्रीयकरण कर लिया। तेल की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए 1960 में बगदाद में कुवैत, ईरान, इराक, सउदी अरब और वेनेजुएला की बैठक हुई और तेल उत्पादकों के संगठन (ओपेक) का गठन किया। बाद में इसमें कतर, इंडोनेशिया, लीबिया, संयुक्त अरब अमीरात, अल्जीरिया, नाइजीरिया, इक्वाडोर और गेबोन भी शामिल हो गए। तब से इन्होंने मिल कर उत्पादन की रणनीति बनानी शुरू की।
ब्रेंट का हुआ उदय
1970 के दशक के मध्य में नार्थ सी में यूके और नार्वे के नियंत्रण वाले स्थानों पर तेल के कुछ कुएं खोजे गए। वहां जो कच्च तेल का उत्पादन शुरू हुआ, वही ब्रेंट क्रूड के नाम से बेंचमार्क क्रूड बना। इसके साथ ही डब्ल्यूटीआई क्रूड भी इंटरनेशनल बेंचमार्क का पैमाना बना। भारत तमाम सभी बाजार इसी पैमाने के आधार पर खरीद-फरोख्त करते हैं।