'लॉकडाउन आगे बढ़ा तो इकॉनमी तबाह होगी'



कोरोना वायरस महामारी को रोकने के लिए लगातार 40 दिनों के देशव्यापी लॉकडाउन का फैसला अर्थव्यवस्था के लिए बेहद सख्त कदम है। इसके प्रतिकूल असर से बाहर निकलना तबतक आसान नहीं हो सकता है, जबतक हम अपने मकसद के प्रति पूरी तरह स्पष्ट नहीं हों। वर्तमान परिदृश्य में और भविष्य में भी, स्वास्थ्य को लेकर महामारी संबंधी चिंताओं तथा आजीविका कमाने के मूलभूत तर्कों के बीच बड़ा टकराव होगा। मुझे इसमें संदेह है कि जब स्वास्थ्य तथा आजीविका में से किसी एक को चुनने का कठिन विकल्प होगा तो राजनीतिज्ञ स्वास्थ्य के पक्ष में जा सकते हैं।
-0.4% रह सकती है आर्थिक विकास दर
लॉकडाउन के आर्थिक परिणाम बेहद विनाशकारी हैं। बीते 23 अप्रैल को मैंने तीन विद्वान अर्थशास्त्रियों से बातचीत की, जिन्होंने काफी विस्तार से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर पर प्रकाश डाला।


अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, देश की जीडीपी विकास दर वित्त वर्ष 2019-20 के 5.5% की तुलना में वित्त वर्ष 2020-21 में -0.4% रह सकती है। उनके मुताबिक, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2020) बेहद बद्तर, दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) थोड़ा बेहतर, जबकि वित्त वर्ष की बाकी छमाही में थोड़ा सुधार होगा।


1980 के बाद सबसे बुरा दौर
अगर ये अनुमान सच साबित होते हैं, तो 1979-80 की भीषण आर्थिक सुस्ती के बाद यह दौर अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बुरा होगा, जब जीडीपी विकास दर 5.5% से घटकर सीधे -5.2% पर पहुंच गई थी।


अंत यहीं नहीं होने वाला। पर्याप्त रूप से वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पन्न और बिक्री न होने की वजह से गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) में भारी गिरावट आएगी, जिसका केंद्र तथा राज्य सरकारों पर बेहद बुरा असर पड़ेगा। ऐसे में विनिवेश की तो चर्चा भी नहीं करनी चाहिए। हेल्थ तथा अनाजों और राशन पर खर्च में अनावश्यक रूप से भारी बढ़ोतरी होगी, जबकि अन्य खर्च जैसे पहले लिए गए लोन के ब्याज के भुगतान में कोई कमी नहीं होगी। राजकोषीय घाटा आसमान छुएगा।


वर्क फ्रॉम होम
इस संकट से कोई कैसे निपट सकता है? जितनी जल्दी हो सके, लोगों को सुरक्षा के साथ वापस काम पर लाना बड़ी चुनौती होगी। सूक्ष्म, लघु एवं मझोले (MSME) तथा निर्माण गतिविधियों को पटरी पर लाना सबसे जरूरी होगा। ये उद्योग भारी तादाद में लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं। इनके समक्ष दो समस्याएं हैं, जिनका समाधान सरकार कुछ कदम उठाकर सकती है।


कामगारों को वापस लाना चुनौती
पहला, कामगारों को वापस कैसे लाया जाए। इसके लिए भारतीय रेलवे का इस्तेमाल सबसे बेहतरीन उपाय होगा। मई के पहले सप्ताह से मुख्य इंडस्ट्रियल एवं मैन्युफैक्चरिंग हब के लिए सीमित स्टॉप वाली यात्री ट्रेनें चलाई जाएं, जिनमें रेलवे पुलिस की पूरी व्यवस्था हो और साफ-सफाई का पूरा ध्यान दिया जाए। 50 रूटों पर इस तरह की ट्रेनें चलाना पर्याप्त होगा।


एमएसएमई को कर्ज की जरूरत
दूसरा कदम इस बात को सुनिश्चित करना है कि एमएसएमई तथा निर्माण कारोबार को पर्याप्त रूप से कार्यशील पूंजी मिले। इस दिशा में आरबीआई ने अहम कदम उठाए हैं, लेकिन बैंक अभी भी लोन देना नहीं चाह रहे हैं। उन्हें ऐसे समय में लोन के एनपीए हो जाने का भय है। ऐसे में वित्त मंत्रालय को कदम उठाना होगा।


कंपनियां 60% कर्ज सरकारी बैंकों से लेते हैं। बड़े डिफॉल्टर्स एमएसएमई नहीं, बल्कि बड़ी कंपनियां हैं। इन तमाम छोटे उपक्रमों को पहले चरण में कार्यशील पूंजी की जरूरत है। इसकी घोषणा जल्द से जल्द क्यों नहीं की जा सकती है?


हमें लोगों को जल्द से जल्द काम पर लाना होगा। हमें अपने मैन्युफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्रों के दरवाजे खोलने होंगे। लॉकडाउन को चार मई से पूरी तरह उठाने का वक्त आ गया है। अगर लॉकडाउन को आगे बढ़ाया जाता है तो यह अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी कदम साबित होगा, वह भी ऐसा जहां से लौटने की कोई गुंजाइश नहीं होगी।