लॉकडाउन में मोक्ष के इंतजार में 'कैद' हैं अपनाें की अस्थियां


लखनऊ
कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लगे लॉकडाउन के कारण राजधानी लखनऊ के कई लोगों की अस्थियां लाकर में कैद हैं। लॉकडाउन की वजह से इनका विसर्जन नहीं हो पा रहा है। भैंसाकुंड श्मशान घाट में बने लार्कस में लोग इन्हें रख रहे हैं। लॉकडाउन खत्म होने पर ही इनका विसर्जन हो पाएगा। लॉकडाउन की वजह से लखनऊ में जिनका निधन हुआ है, उनकी अस्थियां गंगा में विलीन नहीं हो पा रही हैं।
पहले लोग अंतिम संस्कार के दूसरे-तीसरे दिन ही अपने परिजनों की अस्थियां गंगा में विसर्जित कर देते थे। इससे ज्यादा समय तक अस्थियां लाकर में नहीं रहती थी। दरअसल भैंसा कुंड श्मशान घाट पर कुल 18 लाकर बने हैं। जिसमें अस्थियां रखी जाती हैं। पूर्व में कभी भी ऐसा समय नहीं आया जब लाकर फुल हो गए हों।


पहले एक लॉकर में केवल एक व्यक्ति की अस्थियां रखी जाती थी। लेकिन अब एक एक लॉकर में 5 से 10 लोगों की अस्थियां रखी गई हैं। यही वजह है कि भैंसाकुंड के लॉकर फुल हो गए हैं। यहां लॉकडाउन के बाद से 200 से ज्यादा लोगों की अस्थियां रखवाई जा चुकी हैं, जबकि लॉकर महज 18 हैं।


अस्थियां विसर्जित करन पर ही मिलती है मुक्ति
हिंदू धर्म में मृत्यु के तीसरे दिन दिवंगत आत्मा की शांति के लिए अस्थियां को विसर्जित करने की मान्यता है। इस मान्यता पर कोरोना लॉकडाउन की विपदा भारी पड़ रही है। बार्डर सील हैं और वाहनों का आवगमन पूरी तरह बंद है। अस्थियां विसर्जन के साथ परिवार के शुद्धिकरण जैसे सामाजिक रीति रिवाज की परंपराओं के निर्वहन में भी लोगों को मुश्किलें हो रही हैं।


पास बनवाकर करा सकते हैं विसर्जन
बैकुंठ धाम में नगर निगम की तरफ से तैनात बाबू अरविंद के मुताबिक, यहां रोज दो से चार लोगों की अस्थियां लॉकर में रखवाई जा रही हैं। दरअसल, अस्थि विसर्जन के लिए दूसरे शहर जाते वक्त रोका नहीं जाता, लेकिन लौटते वक्त परेशानी बढ़ जाती है। इसी कारण लोगों को सलाह दी जा रही है कि पास बनने पर ही विसर्जन के लिए अस्थियां लेकर जाएं।


विसर्जन के लिए स्थिति सामान्य होने तक इंतजार
बहुत से लोगों ने अस्थि विसर्जन इसलिए रोक रखा है क्योंकि अभी संक्रमण का खतरा है। अगर वे पास के किसी कुंड-तालाब में भी विसर्जन के लिए जाते हैं तो खतरा बढ़ेगा। इसीलिए बेहतर यही है कि स्थिति सामान्य होने का इंतजार किया जाए। उनका कहना है कि यही मृतक को असली श्रद्धांजलि होगी। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वर्तमान स्थितियों को देखते हुए महज तीन दिन में श्राद्ध कर्म निपटा रहे हैं।


गुलाला घाट पर कम है संख्या
बैकुंठ धाम के उलट गुलाला घाट के लॉकर में कम लोग ही अस्थियां रखवा रहे हैं। यहां के संचालक ने बताया कि यहां के ज्यादातर लॉकर पुराने हो गए है। ऐसे में अगर कोई अस्थि रखना भी चाहता है तो उसे परेशानी होती है। ऐसे में लोग कोई दूसरी सुरक्षित जगह तलाश करते है। इसके अलावा कई अस्थियां ऐसी है, जो बरसों से रखी हैं। लोग इन्हें लेने आए ही नहीं हैं।


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