टूटी सी झोंपड़ी के बाहर मां के पास बैठे इन 5 बच्चों को अभी भी है पिता का इंतजार
दिल्ली
दिल्ली में एक लाश हफ्ते भर से अंतिम संस्कार के लिए इंतजार में है। उधर, गांव में गरीबी से बदहाल पत्नी की बेबसी यह है कि छोटे-छोटे पांच बच्चों को लेकर इतनी दूर आ नहीं सकती। पोस्टमॉर्टम कराके शव को गांव नहीं ले जा सकती। लॉकडाउन की इस त्रासदी में उस लाश और परिवार के बीच फासला है तकरीबन 850 किलोमीटर का। लाचारी के बीच गांववालों के कहने पर पति के नाम का पुतला बनाया और अंतिम संस्कार करना पड़ा। एक साल के बेटे से पुतले को मुखाग्नि दिलाई और तहसीलदार के जरिए दिल्ली पुलिस से अनुरोध कर दिया कि वह उनके पति का अंतिम संस्कार दिल्ली में ही कर दें। हो सके तो बाद में उनकी मिट्टी (अस्थियां) गांव तक पहुंचवा दें।
ये जो तस्वीर में टूटी सी झोंपड़ी के बाहर मां के आंचल में सिमटे छोटे-छोटे बच्चे दिख रहे हैं। ये निस्बू (10), खुशबू (8), नीशू (6), अनुष्का (4), बेटा अभि (1) हैं। इन्हें अब भी पापा का इंतजार है। पर, पत्नी पूनम को नहीं। दिल्ली से करीब 850 किलोमीटर दूर गोरखपुर जिले के चौरीचौरा के गांव के डुमरी खुर्द में टूटी सी झोंपड़ी में रहते हैं। न जमीन है, न जायदाद। दरअसल, पूनम के पति सुनील जो दिहाड़ी मजदूर थे, दिल्ली में भारत नगर के प्रताप बाग में किराए पर रहते थे। लॉकडाउन के दौरान ही चिकन पॉक्स हो गए। 11 अप्रैल को उनकी तबीयत बिगड़ी। स्थानीय लोगों ने कोरोना के डर से पुलिस को कॉल कर दी। भारत नगर थाने के एसआई आनंद सिंह ने एंबुलेंस बुलाकर सुनील को बाड़ा हिंदूराव में भर्ती कराया। वहां से दूसरे, फिर तीसरे अस्पताल रेफर करते हुए आखिर में सफरदजंग भेज दिया गया। इलाज के दौरान 14 अप्रैल को सुनील ने दम तोड़ दिया। हालांकि कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट निगेटिव थी।
पुलिस की दिक्कत यह कि उसे परिवार का पता मालूम नहीं था। सुनील का मोबाइल इन दिनों कमरे में रहा। गांव से उनका परिवार पड़ोसियों की मदद से सुनील को फोन करता रहा। कुछ समय तक घंटी जाती रही, बाद में फोन डिस्चार्ज हो गया। पुलिस ने मोबाइल चार्ज किया, तो गांव से फिर कॉल आई। पुलिस ने कॉल रिसीव की। बताया कि सुनील का निधन हो गया है। शव को आकर ले जाएं। पुलिस ने मोर्चरी में शव को सुरक्षित रखवा दिया।
लेकिन सुनील के परिवार की दुश्वारी यह कि घर पर उसकी पत्नी पूनम और छोटे 5 बच्चों के अलावा कोई नहीं। 4 बेटियां और सबसे छोटा बेटा है। सुनील ही घर में इकलौते कमाने वाले थे। बदहाली में जी रहा पूरा परिवार तिनका-तिनका बिखर गया है। हालत यह कि पति के शव को लेने पूनम दिल्ली आ नहीं सकतीं। वह आजतक गांव से नहीं निकली हैं। लॉकडाउन में गांव से कोई आने को तैयार नहीं है। मां को रोते बिलखते देख बच्चे भी नहीं समझ पा रहे, क्या हुआ है। दिल्ली पुलिस बार-बार संपर्क साधती रही। कई दिन गुजर गए, तो वहां के तहसीलदार और एसएचओ से संपर्क किया, तब जाकर हालात का पता चला।