हमें बचा लीजिए नहीं तो कोरोना से पहले भूख से मर जाएंगे'..तमिलनाडु में फंसे बिहारी मजदूरों की गुहार


पटना:
बिहार से पलायन कर चुके मजदूर अब कोरोना काल में किसी तरह से अपने घर पहुंचना चाहते हैं। श्रमिक एक्सप्रेस ने ऐसे हजारों मजदूरों को घर तक पहुंचाया भी। लेकिन अभी भी न जाने कितने श्रमिक दूसरे राज्यों में फंसे हुए हैं। ऐसे ही एक मजदूर ने अपने 15 साथियों के साथ तमिलनाडु से अपनी व्यथा नवभारत टाइम्स डॉट कॉम के जरिए सरकार तक पहुंचाने की कोशिश की है।
वीडियो भेज कर मार्मिक अपील
बेतिया के रहने वाले महेश्वरी प्रसाद कुशवाहा 4 दिसंबर 2019 को बेतिया से अपने 15 साथियों के साथ तमिलनाडु आए थे। वेल्डिंग का काम करने वाले महेश्वरी को पता चला था कि तमिलनाडु के तिरुवल्लु जिले में इस काम से जुड़े कुशल श्रमिकों की मांग है। इन्हें काम मिला भी.. लेकिन कोरोना वायरस के भारत में दाखिल होते ही इनके बुरे दिन शुरू हो गए।


महेश्वरी प्रसाद कुशवाहा ने एक वीडियो मैसेज भेजा है और सरकार से मार्मिक अपील करते हुए खुद और साथियों को बचाने की गुहार लगाई है। इनका कहना है कि जो हाल है उसके हिसाब से कोरोना से पहले तो इन्हें भूख ही मार डालेगी। 
ये मजदूर कैसे फंसे लॉकडाउन में?
महेश्वरी प्रसाद कुशवाहा, अजय कुमार यादव, भूट्टी सिद्दीकी, रामविनय विश्वकर्मा और पवन प्रसाद इन पांचों ने रहने के लिए एक घर ढूंढा तो बाकी 10 लोग भी तिरुवल्लु जिले में ही किराए का मकान ढूंढ कर वहीं शिफ्ट हो गए। जब कोरोना का प्रकोप फैलने लगा और लॉकडाउन घोषित किया गया तो इन्हें लगा कि बस कुछ दिनों की बात है। लेकिन इन्हें क्या पता था कि यही गलतफहमी इन सबको तमिलनाडु में ही फंसा देगी।


खिचड़ी ने फिलहाल बचा रखा भुखमरी से
कोरोना के फैलते ही इन 15 लोगों का काम छूट गया। महेश्वरी ने नवभारत टाइम्स डॉट कॉम को फोन पर बताया कि कोरोना के फैलते ही इनका काम छूट गया। पास में जो पैसे थे वो खत्म हो चुके हैं। महेश्वरी के मुताबिक पिछले एक हफ्ते से सभी लोग किसी तरह से थोड़ी-थोड़ी खिचड़ी खाकर जान को सलामत रखे हुए हैं। लेकिन ये राशन भी जल्द ही खत्म हो जाएगा। फोन पर इन्होंने हमें बताया कि स्थानीय लोग भी इनकी कोई मदद नहीं कर रहे।


कहां आ रही दिक्कत?
दरअसल इस जिले में हिंदी जानने वाले न के बराबर हैं। खासतौर पर इनके स्थानीय इलाके में तो बिल्कुल भी नहीं। रविवार को ये लोग नजदीकी ट्रैफिक पोस्ट पर गए और खुद को बचाने की गुहार लगाई। लेकिन ट्रैफिक पुलिस के जवान हिंदी समझ ही नहीं पाए। रेलवे स्टेशन जाने के नाम पर ही ये कांप रहे हैं क्योंकि घर से बाहर निकलने वालों पर लॉकडाउन के चलते सख्ती बरती जा रही है। ऐसे में पुलिस भाषा तो नहीं ही समझ पाएगी ऊपर से मार खाने का भी डर है।
लिहाजा इन श्रमिकों को अब मदद की दरकार है। स्थानीय प्रशासन तक न पहुंच पाने की वजह से ये लाचार हो चुके हैं। अंत में थक हारकर इन्होंने वीडियो मैसेज के जरिए गुहार लगाई है।