खाने को पैसे नहीं, घर जाने को कहां से लाऊं....1600Km के सफर पर पैदल निकला परिवार


गुड़गांव
कोरोना वायरस लाॉकडाउन की वजह से शुरू हुईं मजदूरों की दिक्कतें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। सरकार ने प्रवासी लोगों की मदद को ट्रेनें जरूर चला दी हैं लेकिन अभी भी कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें इसमें सीट मिलना दूर की कौड़ी नजर आ रही है। ऐसा ही एक परिवार घर जाने के लिए पैदल निकल पड़ा है। इन्हें बिहार जाना है, दूरी कुल 1600 किलोमीटर का है, जिसमें से परिवार 500 किलोमीटर का सफर तय चुका है।


रवि पासवान नाम (35 साल) अमृतसर की एक फैक्ट्री में काम करते थे। लॉकडाउन में नौकरी से हाथ धोना पड़ा। रवि पत्नी और बेटी के साथ वहां थे। लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में जैसे-तैसे उन्होंने गुजर किया लेकिन फिर मई आते-आते पैसे की तंगी होने लगी, जिस घर में तीन साल रहे थे मालिक ने किराया न मिलने पर वहां से निकाल दिया।


परिवार कुछ दिन सड़क पर ही रहा। श्रमिक स्पेशल ट्रेन में सीट की कोशिश की लेकिन जब कुछ नहीं हुआ तो उन्होंने पैदल ही चलने का फैसला किया। रवि का घर दरभंगा में है जो करीब 1600 किलोमीटर दूर है। लेकिन बिना नौकरी और यातायात के साधन के उन्हें पैदल निकलना ही पड़ा।


जेब में एक रुपया नहीं, खाना तब ही खाते हैं जब कोई दे दे
सफर में कोई ट्रक मिलता है तो परिवार उससे मदद ले लेता है, लेकिन ऐसी मदद कितनी मिल रही है इसका अंदाजा इससे लगाएं कि परिवार 5 दिनों में अमृतसर से गुड़गांव पहुंचा है। परिवार के पास एक भी पैसा नहीं है। खाना तब ही खा पाते हैं जब कोई डोनेट करता है। 
गुड़गांव में रवि राजीव चौक के पास पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे। साथ में छह साल की बेटी और पत्नी हैं। एक बोरा है जिसमें कपड़े और कुछ बर्तन हैं। रवि ने बताया कि बेटी छोटी है, थक जाती है इसलिए उन्होंने रुककर आराम करना होता है। रवि ने बताया कि कभी-कभी वे सोचते हैं कि इस सामान को अगर छोड़ दें तो हो सकता है सफर थोड़ा आसान हो जाए, लेकिन फिर लगता है कि उनके पास इसके सिवा कुछ 'अपना' है भी नहीं।


मदद के नाम पर ठगने की कोशिश में थे लोग
पासवान बताते हैं कि अमृतसर में एक शख्स ने कहा था कि वह उन्हें ट्रेन में सीट दिलवाने में मदद करेगा लेकिन इसके लिए 2 हजार रुपये प्रति व्यक्ति लगेगा। रवि ने उस बात को याद करते हुए कहा, 'मेरे पास खाना खरीदने को पैसे नही हैं, टिकट के लिए 6 हजार कहां से लाता।'