कुछ लोगों को दूसरों के मुकाबले कम है कोरोना का खतरा, जानें वजह


नई दिल्ली
उम्रदराज और पहले से बीमार लोग कोरोना वायरस के आसान शिकार (vulnerabe to the novel coronavirus) हैं। हालांकि, अब हालिया स्टडीज से पता चला है कि कोरोना के जोखिम को तय करने के लिए सिर्फ यही फैक्टर जिम्मेदार नहीं हैं। जेंडर, जेनेटिक्स और व्यवहार भी तय कर रहे हैं कि किसी शख्स को कोविड-19 के चपेट में आने का कितना जोखिम है। दुनियाभर के रिसर्चर इस बीमारी का पुख्ता इलाज ढूंढने में लगे हैं लिहाजा अब उनका ध्यान मरीजों की इन खासियतों की तरफ गया है।

क्या इलाज में सेक्स हार्मोंस निभाएंगे अहम भूमिका?
दुनियाभर से जुटाए गए आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं न सिर्फ पुरुषों के मुकाबले कोविड-19 से गंभीर रूप से कम बीमार हो रही हैं बल्कि उनके ठीक होने की संभावना भी ज्यादा है। कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसकी एक बड़ी वजह यह हो सकती है कि महिलाएं बड़ी मात्रा में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोंस प्रोड्यूस करती हैं।


एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन की वजह से महिलाएं ज्यादा सुरक्षित!
एस्ट्रोजेन उस ACE2 प्रोटीन को प्रभावित करता है जिसका कोरोना वायरस कोशिकाओं पर हमले में इस्तेमाल करता है। दूसरी तरफ, प्रोजेस्टेरोन में ऐंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं जो इम्यून सिस्टम के ओवररिएक्शन को रोकते हैं। उदाहरण के तौर पर गर्भवती महिलाओं का मामला ले सकते हैं। प्रेग्नेंट महिलाओं में इम्यून सिस्टम वैसे तो कमजोर होता है लेकिन ऐसा देखा जा रहा है कि अगर ये कोरोना पॉजिटिव पाई जाती हैं तो उनमें संक्रमण की तीव्रता मध्यम रह रही है। संभवतः इसके लिए एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन का उच्च स्तर जिम्मेदार है। 
अमेरिका में शुरू हुआ हार्मोन थेरपी का क्लीनिकल ट्रायल
तो क्या एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन कोविड-19 मरीजों के इलाज में कारगर हो सकते हैं? अमेरिका में वैज्ञानिक अब इसी सवाल का जवाब ढूंढने के लिए क्लीनिकल ट्रायल कर रहे हैं। ये हार्मोंस कम समय के लिए इस्तेमाल हों तो सुरक्षित हैं लेकिन अगर इन्हें ज्यादा वक्त के लिए इस्तेमाल किया गया तो पुरुषों में छाती के फूलने और मुलायम होने जैसे साइड इफेक्ट दिख सकते हैं।


सिर्फ हार्मोन नहीं, बायोलॉजिकल और व्यहार से जुड़े फैक्टर भी जिम्मेदार
फिलहाल विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना के इलाज में इस हार्मोन थेरेपी के कारगर होने के अभी पर्याप्त सबूत नहीं मिले हैं। दरअसल, आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि कोरोना के मामले में उम्रदराज महिलाएं उसी उम्र के पुरुषों के मुकाबले जल्दी ठीक होती हैं जबकि बुजुर्ग महिलाओं में ये हार्मोन कम मात्रा में बनते हैं। महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कोरोना से कम जोखिम है, इसके पीछे बायोलॉजिकल और व्यवहार से जुड़े फैक्टर भी जिम्मेदार हो सकते हैं।


क्या धूम्रपान भी तय कर रहा है संक्रमण का स्तर?
फ्रांस के एक शीर्ष न्यूरोबायोलॉजिस्ट ने कहा है कि तंबाकू में मौजूद निकोटीन कोरोना के हमले को नाकाम कर सकता है। इसके पीछे हाइपोथेसिस यह है कि जो निकोटीन वायरस को रोक देता है। इसके अलावा हो सकता है कि निकोटीन इम्यून सिस्टम के ओवररिएक्शन को भी कम करे जो कोविड-10 के गंभीर मरीजों में बहुत ज्यादा देखा जा रहा है।
कोरोना मरीजों में धूम्रपान करने वालों की संख्या कम
इसका शुरुआती आकलन करीब 500 कोरोना मरीजों पर की गई स्टडी पर आधारित है। इनमें से सिर्फ 5 प्रतिशत ही स्मोकर यानी धूम्रपान करने वाले थे। डेटा के विश्लेषण से डॉक्टरों ने अनुमान लगाया है कि कोरोना की चपेट में आने वालों में धूम्रपान करने वालों की संख्या कम है। द गार्डियन में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक पैरिस के अस्पतालों में कोरोना के करीब 11 हजार मरीज भर्ती थे। इनमें से 8.5 प्रतिशत ही धूम्रपान करने वाले थे जबकि फ्रांस में स्मोकर्स की अनुमानित संख्या कुल आबादी का 25 प्रतिशत है।


धूम्रपान को लेकर गलतफहमी न पालें
इस अध्ययन के आधार पर इस गलतफहमी में बिल्कुल न आएं कि धूम्रपान से कोरोना का खतरा कम है। कोरोना को रोकने में निकोटीन की भूमिका हो सकती है लेकिन ध्रूम्रपान अपने आप में बहुत ज्यादा खतरनाक है। एक शीर्ष फ्रांसीसी स्वास्थ्य अधिकारी ने चेताया कि हर साल फ्रांस में स्मोकिंग से 75 हजार लोगों की मौत होती है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि निकोटीन कोरोना के खिलाफ कवच है या नहीं, अभी यह साफ नहीं है। लेकिन यह स्पष्ट है कि धूम्रपान करने वाले कोरोना मरीजों की हालत बहुत ज्यादा गंभीर रह रही है क्योंकि तंबाकू के धुएं की वजह से उनके फेफड़े पर पहले से बहुत बुरा असर पड़ा हुआ होता है।


क्या जीन भी तय कर रहे हैं कोरोना के जोखिम का स्तर?
स्टडीज बताती हैं कि SARS और नोवेल कोरोना वायरस के जोखिम का स्तर जेनेटक कोड से भी निर्धारित हो रहा है। जेनेटिक कोड से इस वायरस के प्रति इम्यूनिटी तय हो रही है। महिलाओं में दो X क्रोमोजोम्स होते हैं। यह भी महिलाओं के ज्यादा सुरक्षित रहने का एक कारण हो सकता है।



ACE1 जीन की मौजूदगी से खतरा कम
कोरोना वायरस कोशिकाओं के सतह पर स्थित ACE2 रिसेप्टर को संक्रमित करता है। लेकिन ACE1 जीन की मौजूदगी संक्रमण की आशंका को कम करती है। डेटा बताते हैं कि जिन देशों के लोगों में ACE1 जीन की फ्रीक्वेंसी कम है खासकर यूरोप के देशों में, वहां ज्यादा संक्रमण और मौतें हो रही हैं। एक हालिया स्टडी में यह भी पता चला है कि पुरुषों में ACE2 रिसेप्टर ज्यादा होते हैं। इसीलिए पुरुषों को संक्रमित होने की आशंका भी ज्यादा है।


ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजेन की भूमिका
ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजेन (HLA) के लिए जिम्मेदार जीन 2 तरह के होते हैं। दरअसल HLA प्रोटीन होते हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि हमारा इम्यून सिस्टम हमारे शरीर पर ही हमला न कर दे। स्टडी से पता चला है कि HLA के दोनों वैरियंट में कोरोना से खतरे का स्तर अलग-अलग है। एक वैरियंट में कोरोना का खतरा कम है तो दूसरे में ज्यादा। रिसर्चरों का कहना है कि लोगों में HLA के प्रकार की पहचान करने से संक्रमण की गंभीरता की सटीक भविष्यवाणी करने में मदद मिलेगी। इससे वैक्सीन बनाने में काफी मदद मिल सकती है।