प्रोटोकॉल तोड़ ह्यूमन ट्रायल की जल्दी, सितंबर तक मिल जाएगी वैक्सीन


कोरोनावायरस : प्रोटोकॉल तोड़ ह्यूमन ट्रायल की जल्दी, सितंबर तक मिल जाएगी वैक्सीनअभी तक ये पता नहीं चला है कि जानवरों पर कोरोना वैक्सीन का असर क्या है। हालांकि वुहान से लेकर इंग्लैंड तक के लैब वैक्सीन बनाने के लिए काम कर रहे हैं। इससे पहले ईबोला की वैक्सीन पांच साल के रिसर्च के बाद बनी थी। इस बार पूरी दुनिया आपात स्थिति से निपट रही है, इसलिए तैयारी उसी तरह से हो रही है। दो साल के क्लीनिकल ट्रायल को दो महीने के भीतर पूरा करने की योजना बनाई गई है।
इंग्लैंड में एक साथ 21 लैब में काम शुरू
इंग्लैंड में कोरोनावायरस वैक्सीन के लिए क्या किया जा रहा है, इसके बारे में आपको बताते हैं। यहां 21 नए रिसर्च प्रोजेक्ट शुरू कर दिए गए हैं। इसके लिए इंग्लैंड की सरकार ने 1.4 करोड़ पाउंड की राशि मुहैया कराई है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में 10 लाख वैक्सीन की डोज बनाने की तैयारी चल रही है। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन खुद Covid-19 के शिकार हो गए थे। हालांकि अब वो पूरी तरह स्वस्थ हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वैक्सीन बनाने के लिए तय प्रोटोकॉल से पहले ही इसे ह्यूमन टेस्टिंग की तैयारी चल रही है। जानकारों के मुताबिक खुद ऑक्सफोर्ड के रिसर्चर्स को पता नहीं है कि वैक्सीन कितनी कारगर होगी।
सितंबर तक वैक्सीन बनाने का लक्ष्य
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी (Oxford University)में जेनर इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर आड्रियान हिल कहते हैं, हम किसी भी कीमत पर सितंबर तक दस लाख डोज तैयार करना चाहते हैं। एक बार वैक्सीन की क्षमता का पता चल जाए तो उसे बढाने पर बाद में भी काम हो सकता है। ये स्पष्ट है कि पूरी दुनिया को करोड़ों डोज की जरूरत पड़ने वाली है। तभी इस महामारी का अंत होगा और लॉकडाउन से मुक्ति मिलेगी. कोरोनावायरस को खत्म करने के लिए वैक्सीन ही सबसे कारगर उपाय हो सकता है। सोशल डिस्टेंशिंग (Social Distancing) से सिर्फ बचा जा सकता है।
वैक्सीन के असर का आकलन
जेनर इंस्टीट्यूट के मुताबिक दो महीने में पता चल जाएगा कि वैक्सीन मर्ज कितना कम कर पाएगी। इंग्लैंड सरकार के चीफ साइंटिफिक एडवाइजर सर पैट्रिक वैलेस ने कहा, 21 प्रोजेक्ट हैं। ये सत्य है कि सभी प्रोजेक्ट से शुभ समाचार मिलने वाला नहीं है। इसलिए हम सभी को प्रोत्साहन दे रहे हैं। क्या पता कहां से सबसे प्रभावशाली वैक्सीन बन कर निकल जाए।
WHO के प्रोटोकॉल को तोड़ कर हो रहा काम
हालांकि वैक्सीन तैयार करने का प्रोटोकॉल 12 से 18 महीने का होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) की गाइडलाइन भी यही कहती है। ब्रिटेन के चीफ मेडिकल एडवाइजर क्रिस विह्टी कहते हैं, हमारे देश में दुनिया के जाने माने वैक्सीन वैज्ञानिक हैं, लेकिन हमें पूरे डेवलपमेंट प्रोसेस को ध्यान में रखना है। इसे कम किया जा सकता है। टास्क फोर्स इस पर काम कर भी रही है। हम सिर्फ यही चाहते हैं कि जल्दी से जल्दी Covid-19 के इलाज के लिए वैक्सीन तैयार हो जाए।
ईबोला की वैक्सीन बनाने में लगे पांच साल
ब्रिटेन के वाणिज्य मंत्री आलोक शर्मा ने भी इसकी तस्दीक की। उन्होंने डाउनिंग स्ट्रीट में कहा कि हम तेजी से वैक्सीन पर काम कर रहे हैं। सीईपीआई नाम की संस्था सभी लैब से समन्वय का काम कर रही है। इसी ने ईबोला का वैक्सीन बनाने में महारत हासिल की थी। 2014 से 16 के बीच अफ्रीकी देशों में ईबोला से हजारों लोगों की मौत हुई थी। ब्रिटेन ने rVSV-ZEBOV नाम का वैक्सीन तैयार किया था। हालांकि ये पिछले साल ही बनी। ईबोला का वैक्सीन बनाने में पांच साल लगे।
दो साल का ट्रायल दो महीने में होगा पूरा
मानव इस्तेमाल से पहले वैक्सीन का प्री-क्लीनिकल ट्रायल जानवरों पर होता है। इससे पता चलता है कि ये मनुष्यों के लिए कितना सेफ है। इसमें दो साल तक लग जाता है। लेकिन पूरी दुनिया में आपातकाल जैसी स्थिति को देखते हुए इस प्रक्रिया को दो महीने में पूरा करने की तैयारी है। क्लीनिकल ट्रायल के दूसरे फेज में कृत्रिम इन्फेक्शन पर वैक्सीन को आजमाया जाता है। इससे क्षमता का अंदाजा लगता है। वैक्सीन की सेफ्टी, साइड इफेक्ट और असर का आकलन इसी फेज में होता है। फेज 3 में बड़े पैमाने पर इसका वास्तविक इस्तेमाल होता है। फेज-4 में वैक्सीन का लाइसेंस हासिल किया जाता है ताकि मार्केट में बिक्री के लिए उतारा जा सके।